नौकरी  nikita hindu

नौकरी

nikita hindu

एक अजीब फलसफा है नौकरी,
जिसको नहीं मिली वो खुश नहीं
जिसको मिल गई वो भी खुश नहीं।
 

सोचती हूँ कि न जाने क्या-क्या
ख्वाब रखे संजो के मैंने,
नौकरी होगी तो कुछ नया अनोखा करूँगी,
अपने दम पे दुनिया हिला दूँगी।
 

जब पैर रखा इस अनोखी सी दुनिया में
तो जाना लोगों के दोहरे चेहरों को,
कैसे पैरों तले ज़मीन खींच लेते हैं,
पल में आपके पल में औरों के हो जाते हैं।
 

मुश्किल ये नहीं कि मुझे अपना श्रेष्ठ करना हैं,
मुश्किल तो ये है कि औरों को नीचा कर उठना है।
कितनी भी कोशिश कर लूँ,
ना जाने क्यों ये नया होने का बोझ
मुझसे अलग नहीं होता,
“काम नहीं मिल पाएगा अभी तो तुम नई हो
वो भी लड़की जिसने दुनिया देखी नहीं”।
 

सोचती थी कि मेरी डिग्री मेरी पहचान होगी,
कहाँ पता था केवल लड़की होना ही
मेरी पहचान रह जाएगी।
 

किस-किस को समझाऊँ मैं ये कर सकती हूँ,
मुश्किल आने पर डट कर खड़ी हो सकती हूँ।
मेहनत करना अब केवल मेरा महज काम रह गया है,
क्योंकि मेरे काम का अब कोई मोल नहीं रह गया है।

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