अनकहे अल्फ़ाज़ JASPAL SINGH
अनकहे अल्फ़ाज़
JASPAL SINGHआज फिर दिल जो टटोला तो कई राज़ निकले,
उसकी खामोशी मेरे अनकहे अल्फ़ाज़ निकले।
मेरे मजबूर अरमानों की कुछ लाशें निकली,
उसकी मगरूर निगाहों के कुछ अंदाज निकले।
गौर से देखा हर पन्ने पे था उसी का जिक्र,
कुछ मेरी दास्तां कहते कुछ बे-आवाज़ निकले।
कुछ बिखर थे गए कुछ पे स्याही भी ना थी,
कुछ पे आँसू थे गिरे और कुछ ला-इलाज निकले।
एक कोने में कुछ वादों का एक लिफाफा था,
जो निभाए थे मेरे उसके हीला-साज़ निकले।
खून से लिखे और आँसुओं से नहाए फिर भी,
लबों पे आ ना सके सब वो लफ्ज़ आज निकले।