उम्मीद बेकार है  Preeti Sharma

उम्मीद बेकार है

Preeti Sharma

दर्द अगर हो, तो माँ -बाप को दिखता है,
साथी-संगी से उम्मीद करना बेकार ही तो है।
 

साथ गर हमसफ़र हो तो दर्द कम लगता है,
ऐसा सोचना या समझना बेकार ही तो है।
 

यूँ छाई हो ख़ामोशी जो रिश्तों में,
दिल के टूटने की भी आवाज़ नहीं आती,
मूक दिल से बोलने की उम्मीद करना बेकार ही तो है।
 

चुप्पी शब्द में भी होती है,
दर्द दवा में भी होता है,
जो नज़र ही ना पड़े चेहरे पर,
उससे ख़ामोशी पढ़ने की उम्मीद करना, बेकार ही तो है।
 

दर्द जो उलझ जाए भीतर में
तो मोती बन चमकता है,
चमकते मोती से माला बनाने का हुनर जिसमें हो,
उसे दर्द न मिले, ये उम्मीद करना बेकार ही तो है।

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