विजय तेरी  Anoop Kumar Singh

विजय तेरी

Anoop Kumar Singh

अब कि जो तुम बढ़ चले हो
चयन करके पथ स्वयं का,
है बहुत मुश्किल भरा पर क्या करोगे,
कब ज्ञात होता है किसी को
क्या भविष्य में छिपा है।
 

हर दिन नया आश्चर्य है
हर दिन नया संघर्ष है,
हर कदम जो बढ़ रहा है
नित नई संभावनाएँ पा रहा है।
 

जो कि अब तक थे अगोचर
अप्राप्य उन विस्तार में,
क्रम से सही पर जा रहा है
क्या पता क्या प्राप्त हो?
क्या छूट जाये पूर्व का?
 

पर सदा निर्णय नहीं लेना है होता
वो जो कुछ क्षण को लगाकर
ले चुके हो निर्णयों को,
उनसे ही अब पहचान होगी,
वो सही हों या नहीं हों,
संघर्ष बस इतना सा है
कि पूर्ववत् जो थी परिस्थिति
निज निर्णयों के अनुकूल निर्मित
या कि परिवर्तित करने में अब
जो कुछ करोगे है वही।
 

संघर्ष अब तो
अस्वीकार कर जो पूर्व का
तम नाश को खुद आग बनने
अब कि जो तुम चढ़ जले हो
विजय तेरी विजय तेरी
सर्वत्र होगी
अब कि जो तुम बढ़ चले हो।

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