ज़िन्दगी एक शतरंज Sukhbir Singh Alagh
ज़िन्दगी एक शतरंज
Sukhbir Singh Alaghये ज़िन्दगी की शतरंज है,
खेल बिगड़ जाता है पल में।
झूठी मोहब्बत का मुखौटा पहने
जग छल जाता है पल में।
रोज़ रिश्ते बनते बिगड़ते
हर कोई रूठ जाता है पल में।
आज को जीना भूल जाते हैं लोग
चिंता लगी रहती है आने वाले कल में।