अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि संजय साहू
अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि
संजय साहूतुम्हारी नन्ही किलकारियों से गूंज उठता था आँगन,
तुम्हारे कदमों की आहट से महक उठता था जीवन।
तुम्हारे लड़खड़ाते होंठों ने अभी पापा कहना सीखा था,
माँ के आँचल में ही तुमने अभी-अभी जीना सीखा था।
बेटी तुम्हारी नन्ही मुस्कुराहटों को वो ज़ालिम हमसे छीन गया,
कुछ अफसरों की लाचारी से बेटी वो बुजदिल तुमको रौंद गया।
खून उबलता है बेटी मेरा पर न्याय व्यवस्था में रखी आस है,
अब बस बेटी तुम्हारे हत्यारों की देखनी सबको लाश है।
और कोई बेटी न अब इन जालिमों का शिकार बने,
रूह कँपा देने वाला न्याय व्यवस्था से कोई फरमान सुनें।