ख्वाहिश Anupama Ravindra Singh Thakur
ख्वाहिश
Anupama Ravindra Singh Thakurउम्र कट गई सारी बेकार की बातों में,
तू-तू, मैं-मैं कर
एक दूसरे के गुण-दोष निकालने में।
सुख-चैन सारा गँवा दिया है
पैसा, ज़रुरत से ज्यादा कमाने में,
तू बड़ा पर तुझसे मैं बड़ा
यह दुनिया को दिखाने में,
उम्र कट गई सारी बेकार की बातों में।
ना मेरा लेना-देना कुछ
ना ही ज़रुरत,
ना मेरा कोई वास्ता,
फिर भी दुनिया भर की खबरें जुटाने में
और लगे हैं खुद को मसरूफ बताने में,
उम्र कट गई सारी बेकार की बातों में।
अभी भी समय है संभलने का
दूसरों को संभालने का,
मुश्किलों में एक दूसरे का
हाथ थामने का,
छोड़कर बेकार की बातों को
दुनिया में मोहब्बत फैलाने का,
तब न कहना पड़ेगा
कि उम्र कट गई सारी बेकार की बातों में।