स्त्री ही स्त्री की बैरी Anupama Ravindra Singh Thakur
स्त्री ही स्त्री की बैरी
Anupama Ravindra Singh Thakurबहुत हुई है बातें
स्त्री के उत्थान की,
केवल जुलूस, मोर्चे
और मोमबत्तियाँ जलाने की।
नारी की आत्मोन्नति और
आत्म संस्कार के लिए
केवल भाषण बाजी करने की,
नारी को शक्ति स्वरूपा कह
फिर उसे ही दबाने की,
बहुत हुई हैं बातें
स्त्री के उत्थान की।
स्त्री ही स्त्री की वैरी है
ज़रुरत है यह बात
समझने और समझाने की।
देख लो घटना
कहीं बहू को जलाने की
तो कहीं
वृद्धा सास को तरसाने की,
बहुत हुई हैं बातें
स्त्री के उत्थान की।
ऑफिस में
महिला शासन अधिकारी की
पुरुषों की सराहना कर
उन्हें ऊँचा दर्जा देने की,
स्वयं नारी होकर भी
स्त्रियों को ही आँखें दिखाने की।
स्त्रियों को कठपुतली का नाच-नाचाकर
अपना रौब जमाने की,
बहुत हुई हैं बातें
स्त्री के उत्थान की।
परिधान तो हमने बदल दिया
चाँद पर भी पहुँच गए,
विकास भी हमने खूब किया
पर तजी नहीं बातें
पुरानी सोच और
रूढ़िवादी परंपराओं की।
मर्दवादी समाज में
स्त्री को अनुगामिनी बनाने की,
बहुत हुई हैं बातें
स्त्री के उत्थान की।
स्त्री की तरक्की देख
अहम् पुरुष का दुखता है,
कामकाजी महिला को भी
घर में दासी बन रहना पड़ता है।
उठ खड़ी हुई है वह
फिर भी हर कदम पर
आलोचना वह सहती रहती है,
कई बार मर कर भी
सभी के लिए जीती है,
बहुत हुई हैं बातें
स्त्री के उत्थान की।