शायर Ravi Panwar
शायर
Ravi Panwarइंसान हूँ, इंसान की कीमत बता गई,
वो ज़िन्दगी मेरी मुझे जीना सीखा गई।
आगे कोई, पीछे कोई, आदम का हुनर है,
चेहरों में छिपा चेहरा पढ़ना सीखा गई।
अपना बना के कैसे छोड़ते हैं सब,
हर तरफ है मेला, पर, अकेला बना गई।
जाने किधर से आई एक सरफिरी हवा,
मैं बुझ रहा था कि, मुझको जला गई।
चाँद कहता था उसे, आज चाँद ने कहा,
ऐ दोस्त मेरे तुझको वो पागल बना गई।
और, बेबाक़ फिरते है "रवि" शहर में तेरे,
ऐहसान है कि वो तुझको शायर बना गई।