मोहब्बतें  Ravi Panwar

मोहब्बतें

Ravi Panwar

जा रहे तो कुछ गम नहीं है,
आँखे मेरी तो नम नहीं हैं,
तेरे जैसा ही खुद को बना लें,
ऐसे महबूब तो हम नहीं हैं।
 

हैं परेशान कि बैठा परिंदा,
मेरी छत से क्यों उड़ता नहीं हैं,
काँच सा उसके सीने का दिल भी,
टूटा ऐसे कि जुड़ता नहीं है।
 

तुम क्या जानो जुदाई का मंजर,
पीछे उसने छिपाया था खंजर,
और चलाया तो फुरकत ये बोली,
आ रहा है मजा कि नहीं हैं।
 

जब आसमाँ पर घटा छा गयी थी,
याद तेरी मुझे आ गयी थी,
ले गयी, एक हवा उसको चुराकर,
कि ये बारिश का मौसम नहीं हैं।
 

उनसे महरूम हैं मोहब्बत,
जो ख्वाईशों को भुलाते नहीं हैं,
जन्नतों में है जिनका ठिकाना,
वो दोजख में जाते नहीं हैं।
 

और, तू उसको दुआएँ भी देना,
जो वफ़ा को निभाता नहीं है,
तेरा मकसद "रवि" रोशनी है,
सूरज, इस जहाँ को जलाता नहीं हैं।

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