मैं इंतज़ार हूँ Ravi Panwar
मैं इंतज़ार हूँ
Ravi Panwarमैं इंतज़ार हूँ,
गति में मंद, दोहों में छंद,
जीवन का व्यंग्य, और प्रेम में आनन्द।
मैं डोर हूँ जिसका कोई छोर नहीं,
तेरी ही तरफ, पर तेरी ओर नहीं,
सदा ही होती है मैं वो बहार हूँ,
मैं इंतज़ार हूँ।
वो फासलों मे सलवटें,
कभी इधर कभी उधर,
वो रात भर की करवटें,
कभी इधर कभी उधर।
खिड़कियों पर बैठकर टकटकी लगाता हूँ,
बार-बार देखकर घड़ी को मैं मनाता हूँ,
याद में मजा हूँ मैं बेशुमार हूँ,
मैं इंतज़ार हूँ।
जल्दी में हैं तो रेल का,
बच्चों को बस खेल का,
गूँगों को अल्फ़ाज़ का,
बहरों को आवाज़ का,
अनाथ को नाथ का,
और चोरों को बस एक रात का,
होता हैं जो मैं वो खुमार हूँ,
मैं इंतज़ार हूँ।
चाँद को रमजान का,
भक्त को भगवान का,
संघर्ष को पहचान का,
औरत को निज सम्मान का,
सजदे में अमन चैन का,
और करबला में हुसैन का,
मातम सा बनकर मैं बेकरार हूँ,
मैं इंतज़ार हूँ।
मैं कृष्ण हूँ गोपियों के लिए,
तो बंजर जमीन के लिए बारिश,
फकीरों की रोटी हूँ मैं,
और फिर से,
उनसे एक मुलाकात की सिफारिश,
दर्द हूँ तो दवा भी हूँ,
खामोश हूँ और हवा भी हूँ,
इंकार में छिपा मैं इजहार हूँ,
मैं इंतज़ार हूँ।