अपना शहर Anita M. Gupta
अपना शहर
Anita M. Guptaहमने अपना शहर क्या छोड़ा,
सब कुछ कितना बदल गया !
पानी पीने छत पर अब
नहीं आती वो चिड़िया,
कबूतर की गुटरगूँ अब
क्यों नहीं सुनाई देती !
दीवारें जिनसे बातें करते थे
नाराज सी लगती हैं जैसे।
वीरान हो गया वो महल
जहाँ घूमने जाया करते थे,
सूनी हो गईं वो गालियाँ भी
जहाँ खेलते थे हम छुपन-छुपाई।
पल-पल में भावनाएँ हैं बदलती
बिन कहे, बिन सुने,
भर आती हैं आँखे यूँ ही।
चौकीदार की आँखें
चमका करती थी कितनी,
कुछ करने की उनकी वो आशा
कहाँ गई चमक उन आँखों की।
बगीचे में भी नहीं आती वो खुशबू,
फूल भी तो कैसे होंगे वैसे
माली भी तो बदल गया,
माली भी तो बदल गया।