अपना शहर  Anita M. Gupta

अपना शहर

Anita M. Gupta

हमने अपना शहर क्या छोड़ा,
सब कुछ कितना बदल गया !
 

पानी पीने छत पर अब
नहीं आती वो चिड़िया,
कबूतर की गुटरगूँ अब
क्यों नहीं सुनाई देती !
दीवारें जिनसे बातें करते थे
नाराज सी लगती हैं जैसे।
 

वीरान हो गया वो महल
जहाँ घूमने जाया करते थे,
सूनी हो गईं वो गालियाँ भी
जहाँ खेलते थे हम छुपन-छुपाई।
 

पल-पल में भावनाएँ हैं बदलती
बिन कहे, बिन सुने,
भर आती हैं आँखे यूँ ही।
 

चौकीदार की आँखें
चमका करती थी कितनी,
कुछ करने की उनकी वो आशा
कहाँ गई चमक उन आँखों की।
 

बगीचे में भी नहीं आती वो खुशबू,
फूल भी तो कैसे होंगे वैसे
माली भी तो बदल गया,
माली भी तो बदल गया।

अपने विचार साझा करें




1
ने पसंद किया
1836
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com