संघर्ष SUBRATA SENGUPTA
संघर्ष
SUBRATA SENGUPTAवक़्त के थपेड़ों से
संघर्ष करते रहता हूँ,
आत्मबल की भुजाओं से
दो-दो हाथ कर लेता हूँ।
मैं दीपक की वह बाती हूँ
जो सदा जलते रहता हूँ,
थपेड़ों के अंधकार से
कभी नहीं घबराता हूँ।
स्वयं जलकर,
राख बनकर,
अंधकार निगलता रहता हूँ।
परन्तु, जो अँधेरा घात लगाकर
दीपक तले रहता है,
कभी-कभी छद्म वार से,
मुझको घायल करते रहता है।
जीवन की अंतिम साँस तक,
आँधी के आखिरी वार तक,
स्वयं को जलाते जाऊँगा।