जिनके काँधे से दुपट्टा भी ना छूटना चाहे  Mahesh kumar Bose

जिनके काँधे से दुपट्टा भी ना छूटना चाहे

Mahesh kumar Bose

जिनके काँधे से दुपट्टा भी ना छूटना चाहे,
जिसे देखकर फूल भी भरने लगते हैं आहें,
वो जगह महकने लगती हैं जहाँ वो जाते हैं,
हम क्या वो तो फरिश्तों पर भी सितम ढाते हैं।
उनके बारे में यारों भला अब क्या कहे हम,
बहुत कहना है पर वो चाहते हैं चुप ही रहें हम।
 

वो तो अपनी आँखों से कई पैमाने भर सकते हैं,
उनकी एक झलक पाने को लाखों दीवाने मर सकते हैं,
वो जब कभी अचानक अपनी नज़रें झुकाते हैं,
गुल सभी गुलशन के एक साथ झुक जाते हैं।
वो जब हवा में यूँ ही अपना दुपट्टा लहराते हैं,
गुलाब, चमेली, मोगरे डाल संग गिर जाते हैं।
 

उनकी बातें तो यारों मिश्री की डालियाँ हैं,
उनके बाल फूलों वाली बेलों की लड़ियाँ हैं,
उनके गालों का तो महताब खुद दीवाना है,
उनके होठ जैसे किसी गुलाब की पंखुड़ियाँ हैं।
वो जब कभी हौले-हौले हँसते मुस्काते हैं,
बेमौसम ही बरखा वाले बादल छा जाते हैं।

अपने विचार साझा करें




0
ने पसंद किया
1269
बार देखा गया

पसंद करें

  परिचय

"मातृभाषा", हिंदी भाषा एवं हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार का एक लघु प्रयास है। "फॉर टुमारो ग्रुप ऑफ़ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग" द्वारा पोषित "मातृभाषा" वेबसाइट एक अव्यवसायिक वेबसाइट है। "मातृभाषा" प्रतिभासम्पन्न बाल साहित्यकारों के लिए एक खुला मंच है जहां वो अपनी साहित्यिक प्रतिभा को सुलभता से मुखर कर सकते हैं।

  Contact Us
  Registered Office

47/202 Ballupur Chowk, GMS Road
Dehradun Uttarakhand, India - 248001.

Tel : + (91) - 8881813408
Mail : info[at]maatribhasha[dot]com