जीवन मे तेरे SANTOSH GUPTA
जीवन मे तेरे
SANTOSH GUPTAजीवन मे तेरे आकर वह
करता ज्वलित प्रज्ञा की ज्योति,
जलकर स्वयं साधना की आग में
करता रौशन जीवन को तेरी।
भरता वह तुझमे विवेक है
देता वह ज्ञान अनेक है,
बिन गुरू तू क्या होता
बिन ज्ञान तू बस एक तोता।
ज्ञान पाकर अगर घमंड है
व्यक्तित्व तेरा अगर प्रचंड है,
ज्ञात हो तुझको इतना बस
तेरा जीवन होता नीरस।
तू क्या पैदा विद्वान हुआ था
अरे तू तो नादान हुआ था,
तेरा ज्ञान है दान किसी का
तुझको है अभिमान किसका।
विद्या का वह जनक रहा है
उससे ही मेधा पनप रहा है,
उससे ही जीवन चमक रहा है
ज्ञान के उपवन का माली वह,
उससे ही तो पुष्प महक रहा है।
तू चंद्रगुप्त, वह कौटिल्य रहा है
स्थान उसका अतुल्य रहा है,
पार्थ तू, तेरा वह वाहक
तेरे वह अधर्म का दाहक।
तेरे अंदर यदि शिष्य नहीं
अंधकार है कोई दृश्य नहीं,
बिन गुरू वह कब शिखर पर था
बिन गुरू वह कहाँ धनुर्धर था।
सीखा तो वह भी था
जब गुरू का आकार मिला था,
एकलव्य के दक्षिणा पर भी
द्रोणा को अधिकार मिला था।