अपनी इस ज़िन्दगी में  Sukhbir Singh Alagh

अपनी इस ज़िन्दगी में

Sukhbir Singh Alagh

क्या खोया, क्या पाया, अपनी इस ज़िन्दगी में,
जिन पैसों का इतना गुमान करता था,
वो साँस नहीं खरीद पाया, अपनी इस ज़िन्दगी में।
 

कभी घमंड हुआ करता था, अपनी दोस्ती यारी का,
कभी भरोसा था मुझको, अपनी रिश्तेदारी का।
वक्त ने ऐसा खेला पलटा,
सबका चेहरा दिखाया इस ज़िन्दगी में।
 

क्या खोया, क्या पाया, अपनी इस जिंदगी में,
जिन पर तू इतना गुमान करता था,
उन्होंने ही आईना दिखाया, अपनी इस ज़िन्दगी में।
 

पैसा आने के साथ, रिश्ते भी हज़ारों बन जाते हैं,
कभी जो कट्टर दुश्मन थे, वो भी दोस्त बन जाते हैं,
पैसो का ही खेल है ये, जिस के लिए नचाया इस ज़िन्दगी ने।
 

क्या खोया, क्या पाया, अपनी इस ज़िन्दगी में,
जिन पैसों का इतना गुमान करता था,
वो साँस नहीं खरीद पाया, अपनी इस ज़िन्दगी में।

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