रिश्ते  Gaurav Yogendra Rai

रिश्ते

Gaurav Yogendra Rai

जब दिल के तार जुड़ते हैं तब रिश्ते बनते हैं,
जब मन के भाव मिलते हैं तब रिश्ते बनते हैं।
 

कुछ बिना जोड़े जुड़ जाते कुछ जोड़े न जुड़े;
कुछ रिश्ते, आँखों से हाल-चाल खैर-ख़ैरियत पूछकर पलते,
कुछ हाथ मिलाते और फिर हाथ छोड़ते ही ख़त्म हो जाते।
 

जब लब के साथ मन भी मुस्कुराए तब रिश्ते खिलते हैं;
जब तन के साथ मन भी जुड़ जाए तब रिश्ते खिलते हैं,
कुछ निस्वार्थ धूप से ही खिल जाते
कुछ स्वार्थ की खाद से भी नहीं खिलते।
 

कुछ बीड़ी की तरह होते जोश में
जलते नशा देते और धुआँ हो जाते,
कुछ सूरज की तरह होते जोश में
जलते धूप देते और ईश्वर बन जाते।
 

जब रिश्तों में ख़याल का नमक डल जाए
तब जीने का स्वाद आता है;
जब रिश्तों में प्यार की चीनी पड़ जाए
तब खुशी का एहसास रहता है,
कुछ एक पल में स्वाद भर जाते
कुछ जीवन भर बेस्वाद पकते।
 

कुछ बर्फ की तरह ठंडे और सफेद रह जाते,
कुछ नदी की तरह जीवन लेकर बहते रहते।

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