जिंदगी - एक किताब Neeraj Kumar
जिंदगी - एक किताब
Neeraj Kumarहमारी ज़िन्दगी एक किताब की तरह है,
जिसके सभी पन्ने कोरे हैं,
उम्मीद की कलम से जब हम उन्हें भरते हैं
तो कुछ पन्ने खुशियों से भरे होते हैं, तो कुछ गमों से।
जैसे किसी किताब के हर पन्ने पर
कहानी अलग होती है,
वैसे ही ज़िन्दगी के हर दिन की
दास्तां अलग होती है।
अगर किसी किताब के कुछ पन्ने निकल जाएँ
तो हम उन्हें फिर जोड़ लेते हैं,
तो फिर क्यों ज़िन्दगी के कुछ अच्छे दिन बिगड़ जाएँ
तो हम ज़िन्दगी ही छोड़ देते हैं।
जैसे किताब के कुछ पन्ने कोरे मिल जाएँ
तो तुरंत पलट देते हैं,
और अगर ज़िन्दगी के कुछ पल खाली हो जाएँ
तो अपने नसीब को कोसते हैं।
लेकिन जैसे नए अल्फ़ाज़, नए किस्सों से
भरा किताब का अगला पन्ना होता है,
वैसे एक खाली दिन के बाद हर नया दिन
नई खुशियों और उम्मीदों से सजा होता है।
पढ़ते हैं जब हम किताब अक्सर
थोड़ा दिल लगा कर थोड़ा मुस्कराकर कर,
ज़िन्दगी भी वैसे जियो
थोड़ा खुद हँस कर थोड़ा दूसरों को हँसा कर।
किताब से दोस्ती जैसे इंसान का
उम्र भर साथ निभाती है,
वैसे ही ज़िन्दगी से दोस्ती
इंसान की ज़िन्दगी सँवार देती है,
ज़िन्दगी बना देती है।