मुक्तक - 1 Ashish Singh
मुक्तक - 1
Ashish Singhये यारी दोस्ती अपनी बिना तेरे अधूरी है,
तू मेरे पास है लेकिन न जाने कैसी दूरी है,
मिलन हो या न हो पर बस मेरी तो एक ख्वाहिश है,
मैं दिल क्या जान भी दे दूँ ये मेरी जान तेरी है।
हर एक आँसू को पीकर गम को वो फिर भूल जाती है,
विधाता की है वो रहमत मगर उससे भी प्यारी है,
जिसे दुनिया की दौलत ना ही शोहरत की ज़रुरत है,
वो आखिर माँ है जो हर दर्द में भी मुस्कुराती है।
वो टुकड़े प्यार के धागे के जो फिर जुड़ नहीं पाए,
मेरी चाहत के कपड़ों को कभी वो बुन नहीं पाए,
तेरी कीमत को सुन कर हर तराने टिक नहीं पाए,
वो कीमत मिल नहीं पाई तो हम भी बिक नहीं पाए।
ज़माने मे कहाँ दम है, जुदा वो कर नहीं सकता,
मैं तेरे दिल मे बसता हूँ वो बेघर कर नहीं सकता,
मेरी हर साँस मे हर वक़्त तेरी ही तो यादें हैं,
बिना तेरे मैं मर जाऊँ अकेला जी नहीं सकता।
जो करदे जिस्म के टुकड़े उसे तलवार कहते हैं,
भरे हर जख्म जो मरहम, उसे ही प्यार कहते हैं,
शहर की हर गली में अब मोहब्बत के फ़साने हैं,
बयाँ आँखों से जो करदे उसे दिलदार कहते हैं।
मैं आशिक हूँ तेरा सच्चा, तुझे कैसे बताऊँ ये,
लगी है आग सीने में इसे कैसे बुझाऊँ मैं,
मैं रोया था, मैं रोऊँगा, तेरे गम मे मगर सुन ले,
तुझे ना भूल पाउँगा, जो करना है वो तू करले।
हमें पहचानने से अब वही इंकार करते हैं,
वही जो अब किसी के दिल में अपना राज करते हैं,
भुला कर वो हमें जानें क्यों खुद पर ही वार करते हैं,
मोहब्बत की कहाँ उसने नज़ाकत हम समझते हैं।
बिछड़कर गम में मैं तेरे दो आँसू खून के रोया,
तुम्हें कैसे ये बतला दूँ कभी फिर मैं नहीं सोया,
तेरी यादों में खोकर मैं ये आँसू यूँ बहा आया,
दिलों की बात आँसू के ही जरिये मैं बता आया।