क़लम  Smita Abhishek Khandelwal

क़लम

Smita Abhishek Khandelwal

क़लम से बहने दो,
रंगों को रूप लेने दो,
लहरों का शोर सहने दो,
फिर दोबारा कहने दो।
 

बाँध न बाँधो क़लम पे,
कौन है साथी क़दम पे,
रूक के थोड़ी देर बहती राह मोड़ लेने दो,
फिर दोबारा कहने दो।
 

मैं नहीं सोया हूँ साथी,
फिर कहीं कोई वजह थीं,
तूने यादों के सफ़र में
मुझको है थोड़ी जगह दी।
 

फिर बता क्या बोलना है,
मन के पन्ने खोलना है,
शब्द को अपनी क़लम से,
फिर दोबारा जोड़ना है।
 

आज न आए कोई कल,
कल नहीं होगा हर एक पल,
पल में पलकों के भँवर को शब्द थोड़े देने दो,
फिर दोबारा कहने दो।
 

लिख के थोड़ा मन भरेगा ज्ञान के भंडार में,
सुर सभी का एक होगा हिन्द के दरबार में।
मान अपनी मात्र भाषा, शान है अपनी क़लम,
राम की धरती के वासी,
हिन्द है हम, हिन्द है हम।

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