इसरो  SANTOSH GUPTA

इसरो

SANTOSH GUPTA

वो जगे रात-रात, उनके बढ़े हाथ-हाथ,
डर तो था हार का, लक्ष्य था उस पार का।
 

ज्ञान का विज्ञान का, ध्यान का साध का,
रचने को इतिहास का, एक अपूर्व प्रयास का।
 

बुलंद उनका जोश था, उमंग था, तरंग था,
लहराने को चाँद पर चला अपना तिरंग था।
 

चीरकर आसमान को, चूमने को चाँद को,
पढ़ने को, समझने को, वहाँ की बुनियाद को।
 

लक्ष्य कहाँ दूर था, बस कदम दो चार था,
हम तो तैयार थे पर चाँद कहाँ तैयार था।
 

मेहनतों के बाद भी, तैयारियों के साथ भी,
मामा से मिलने की आस अभी बाकी है,
चाँद पर उतरने की अभी तो झाकी है।

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