मैं नहीं Smita Abhishek Khandelwal
मैं नहीं
Smita Abhishek Khandelwalलौट आया बचपन,
नन्हा सा वो मन,
मन में बिखेरे रंगों भरी उमंग,
मैं नहीं भूला।
उड़ती पतंग, बादलों पे सतरंग,
पहला अक्षर माँ के संघ,
मैं नहीं भूला।
बहती हुई उस नाव को,
दरिया पे सिमटे गाँव को,
चादर सी ठंडी छाँव को,
मैं नहीं भूला।
भूला हुआ अल्फ़ाज़ था, जो दोस्तों को याद था,
मिट्टी के ढेरों से बना अपना महल कुछ ख़ास था।
कुछ ख़ास थी वो चाँदनी, टिम-टिम सितारों से भरी,
सपनों के मोती सी जड़ी, बादल में बरखा बन खड़ी।
न दौर था उलझन भरा,
न मोड़ पर कोई डरा,
बेख़ौफ़ चलके चाल को, आगे बढ़ा, आगे बढ़ा।
सुन ऐ सुबह आ चल चलें,
थोड़ा सफ़र तय कर चलें,
पग-पग पे छूटी राह को कुछ पार अपने कर चलें।