साथ!  Mohanjeet Kukreja

साथ!

Mohanjeet Kukreja

एक वक़्त वो था...
कि मेरे सपने भी
बच्चे हुआ करते थे !
 

फिर एक दौर आया
जब मेरे ख़्वाबों के
चेहरों पर मूंछें फूटीं...
और मेरी ख़्वाहिशें
अचानक शर्माने लगीं !
जवान होती हुई
हर एक तमन्ना
अंगड़ाइयाँ लेने लगी;
और मेरी हसरतों ने
ख़ुद को आईने में
निहारना सीख लिया !
 

और एक वक़्त है
यह अब आज का...
मेरे ख़्वाबों के बाल
कुछ पकने लगे हैं,
ख़्वाहिशों के घुटनों
में ज़रा दर्द रहता है,
तमन्नाओं को इन दिनों
सांस की तक़लीफ़ है..
और मेरी हसरतें अब
ऊँचा सुनने लगी हैं !
 

ये सब मेरा साथ अब
ज़्यादा देर न दे सकें शायद !!

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