लड़की वो बदचलन है SONIT BOPCHE
लड़की वो बदचलन है
SONIT BOPCHEबोला मुझे किसी ने
लड़की वो बदचलन है,
लड़के बदल-बदल कर
हर रोज़ घूमती है,
गैरों के ऐंठ पैसे
तारों को चूमती है,
ये ऐश कैश सबकुछ
तो गैर का ही धन है,
लड़की वो बदचलन है,
लड़की वो बदचलन है।
लड़कों को देखकर वो
हल्का सा खाँसती है,
जूतों को देखती है
औकात जाँचती है,
मुस्कान फेरती है
दिल पर उकेरती है,
बोला मुझे किसी ने
बिगड़ा हुआ चलन है,
लड़की वो बदचलन है,
लड़की वो बदचलन है।
मुझको लगे महाशय
वह तो चरित्र वाले,
उनके उसूल गंगा
के से पवित्र वाले।
ठेका समाज का जो
सर पर लिए चले हैं,
हैं सत्यवान यह ही
बाकी तो दोगले हैं।
पर सोचता हूँ क्या यह
चिंता समाज की है
या सिर्फ इन महाशय
की व्यक्तिगत जलन है,
जब भी हमें मिले हैं
हमसे यही कहा है,
लड़की वो बदचलन है,
लड़की वो बदचलन है।
पाया तो मैंने जाना
सीमाएँ लाँघते हैं,
देने पे एक उँगली
यह हाथ माँगते हैं,
उसका मना किया कुछ
इनको लगा है खोटा,
इनका अहम वहीं पर
फिर पड़ गया है छोटा।
यह बात चुभ रही है
इस बात की अगन है,
कारण यही है इनके
बिगड़े हुए वचन हैं,
कहते हैं हर किसी से
लड़की वो बदचलन है।
उसका चरित्र जाँचो
यह किसकी अनुमति है,
उसका चरित्र उथला
या आपकी मति है।
क्या आप हर किसी पर
नजरें न गाड़ते हैं,
गैरों की माँ बहन को
प्रतिदिन न ताड़ते हैं।
अरमान सैकड़ों तो
हैं आपके भी मन में,
पूरे नहीं हुए पर
इस बात की अगन है,
लड़की वो बदचलन है,
लड़की वो बदचलन है।