पारिवारिक लोकतंत्र  B Seshadri "Anand"

पारिवारिक लोकतंत्र

B Seshadri "Anand"

वैसे तो मैं भी आप ही की तरह इंसान हूँ
सीधा साधा भोला भाला नादान हूँ,
क्योंकि आजकल थोड़ा परेशान हूँ
इसलिए ऐसा लग रहा हूँ
मानो जागते हुए सो रहा हूँ
सोते हुए जग रहा हूँ।
 

पर इसका मतलब यह नहीं है कि
मैं मूर्ख हूँ, बेवक़ूफ़ हूँ, या अज्ञानी हूँ,
इसका मतलब है कि मैं एक विवाहित प्राणी हूँ
अर्थात आप ही की तरह शादी शुदा हूँ,
और इस मायने में कई शादी शुदाओं से जुदा हूँ।
 

क्योंकि आज की तारीख में हमारा पत्नी के साथ
न कोई लफड़ा है, न लड़ाई है, न तकरार है,
न तू तू मैं मैं है न हाथपाई है,
हमारे घर में घोर शान्ति छाई है।
 

क्यों कि हमने अपने घर में
प्रजा तांत्रिक प्रणाली अपनाई है,
अर्थात बात ऐसी है कि मेरे घर में डेमोक्रेसी है,
वर्तमान व्यवस्था के तहत
सत्ता की चाबी पत्नी जी के हाथ है
क्योंकि दो तिहाई बच्चों का बहुमत उनके साथ है।
 

इसके आलावा उनको मइके से
बाहर का समर्थन भी प्राप्त है,
इसलिए घर में पत्नी जी की हुकूमत है।
और जहाँ तक मेरा सवाल है बहुत बुरा हाल है,
मेरे साथ न बाल गोपाल है और न ही ससुराल है,
इतना तंग हाल है कि एक-एक वोट का अकाल है।
 

मेरे समर्थकों में मेरा पिल्ला टॉमी ही शामिल है,
इसलिए किसी तरह से मुझे विपक्ष के नेता की हैसियत हासिल है।
क्योंकि मेरी पत्नी करती खूब शृंगार है,
घूमती खूब बाज़ार है, ढ़ेरों साड़ियों और गहनों का अम्बार है,
इसलिए मेरा दावा है कि उनके पास काले धन का भण्डार है।
 

इसलिए जाने कब से चिल्ला रहा हूँ,
साला साली सास ससुर सबसे गुहार लगा रहा हूँ,
कि घनघोर बेईमानी मची है
जल्दी से जल्दी यह बेईमानी मिटाई जाए,
और मेरे आलमारी के गुप्त लॉकर की
जाँच के लिए एस आई टी बिठाई जाए।
 

लेकिन कोई भी मेरी अर्जी सुनने को तैयार नहीं,
कहते हैं कि घर में जब तेरी सरकार नहीं
तो जाँच का तू हकदार नहीं।
 

अगर सत्ता की चाबी होती मेरे हाथ तो बन गई होती बात,
मैं चुटकी में दूध का दूध और पानी का पानी करवा देता,
राशन पानी और साग सब्जी की
खरीदारी में हुए घोटालों की जाँच करवा देता।
 

लेकिन क्या करें साहब बच्चे सारे सत्यानाश हैं,
एक नंबर के नालायक निकम्मे और बदमाश हैं।
वैसे तो दिन भर अपनी मम्मी से मार खाते हैं,
फिर बात-बात पे चिल्लाते हैं और मेरे पास ही आते हैं,
लेकिन जैसे ही टॉफ़ी, चॉकलेट और
आइसक्रीम की आवाज़ सुनते हैं
जा कर सत्ता के साथ चिपक जाते हैं।
 

एक बार सत्ता को पलटने की
पुरजोर कोशिश की तो पत्नी ने कहा,
चुप रहो वरना तुम्हारी इज्जत नीलाम कर दूँगी,
तुम्हारे सारे हथकंडे सरे आम कर दूँगी।
 

तबसे हमने अपने पत्नी के ऊपर हमले कम कर दिए हैं,
क्योंकि एक तो मैं अपनी इज्जत खोना नहीं चाहता
दूसरा विपक्ष के नेता की पोस्ट और
उसके साथ मिलने वाली लंच के डिब्बे के बिना जीना नहीं चाहता,
तब से मेरे परिवार में न पंगे हैं न दंगे हैं,
क्योंकि ये पारिवारिक लोकतंत्र है।

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