अच्छी नहीं लगती B Seshadri "Anand"
अच्छी नहीं लगती
B Seshadri "Anand"ग़मों की रोशनी में ज़िंदगी अच्छी नहीं लगती,
बगीचे में बहारों की कमी अच्छी नहीं लगती।
बहुत शोर दुनिया में तमाशाओं का होता है,
जमाने को मेरी सादगी अच्छी नहीं लगती।
कभी ये आसमान यह कभी झील पे तैरे,
मुझे यह ख़्वाबों की आवारगी अच्छी नहीं लगती।
सितारे हैं पराए से नज़ारे हैं बेगाने से,
जहाँ भर की मिली यह बेबसी अच्छी नहीं लगती।
जिगर का दर्द उसमे हो समंदर आँख का कुछ हो,
बिना जज़्बात कि ये शायरी अच्छी नहीं लगती।