यह बच्चे हैं अभी  B Seshadri "Anand"

यह बच्चे हैं अभी

B Seshadri "Anand"

यह बच्चे हैं अभी कहाँ रस्मों रिवाज जानते हैं,
पंछी हैं उन्मुक्त गगन के कहाँ परवाज जानते हैं,
इनकी अठखेलियाँ हिरणों सी कुलाचे मन चंचल है,
मन के यह भोले, लगते शैतान, किन्तु मन निश्चल है,
फैलाते जब भी पर अपने तो गगन नापते हैं,
यह बच्चे हैं अभी .........
 

होकर परेशान जब भी इन्हें रुला देता हूँ,
देखकर मासूम सी सूरत अपने गम भुला देता हूँ,
ज्यादा बंदिशे नहीं मंजूर अपने ही धुन में मगरूर,
घुटन भरे अहसासों में ये अनचाहे करते हैं कसूर,
आ जाएँ अपनी सी पर, फिर कहाँ किसी की मानते हैं,
यह बच्चे हैं अभी .........
 

शिक्षक हो तुम अगर, तुम इनको सही राह दिखाओ,
माँ बाप बन सखा जीने की इन्हें कला सिखाओ,
फिर देखना इक दिन यह ढेरों मेडल ले आएँगे,
दुनिया की प्रतिस्पर्धा में अपना परचम लहराएँगे,
दिखते हैं यह भोले भाले पर सब कुछ यह जानते हैं,
यह बच्चे हैं अभी .........
 

फिर भी अभी यह बच्चे हैं थोड़े अकल के कच्चे हैं,
छल कपट से दूर सदा किन्तु मन के सच्चे हैं,
मन के हैं यह अल्हड घोड़े, जितना चाहो उतना दौड़े,
यह पथिक अंजान डगर के जरूरी इनपर संयम के कोड़े,
जामवंती दृष्टि से ये सागर बाधाओं को लाँघते हैं,
यह बच्चे हैं अभी .........

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