बेगुनाह Rajender कुमार Chauhan
बेगुनाह
Rajender कुमार Chauhanजो गुनाह कभी किया ही नहीं
उसकी सज़ा मिली है मुझे,
कर के वफ़ा जो दिल दिया,
इसलिए कज़ा मिली है मुझे!
सुलगते हुए खुश्क लम्हों को
शोलों में तब्दील किया,
जले जलाए ज़िस्म के सारे
ज़ख्मों को फिर छील दिया,
बेद़र्दी से रिसते घाव की
पग-पग खिज़ा मिली है मुझे!
जब-जब चाहा नज़र मिले
झुकी हुई निगाहें मिली मुझे,
झील सी गहरी उन आँखों में
बस सर्द आहें मिली मुझे,
उसकी यादों के झोंको की
उड़ती फ़िजा मिली है मुझे!