इन्तहा-ए-आशिकी Rajender कुमार Chauhan
इन्तहा-ए-आशिकी
Rajender कुमार Chauhanएक उम्र नाकाफ़ी है जीने के लिए,
आँखों से छलकती मय पीने के लिए,
हम भी शुमार हैं तेरे आशिकों में,
बात रह जाएगी ये कहने के लिए!
ख़ुदा न खास्ता हम अगर मिल ना सके,
दो क़दम मिल कर भी साथ चल ना सके,
निकले थे सहर रब से हम दुआ कर के,
अफसोस शाम के साथ हम ढल ना सके,
दिल न सही यादों में तेरी रहने के लिए!
जिसे प्यार मिले तेरा वो ख़ुशनसीब मैं नहीं,
खेलूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से वो हबीब मैं नहीं,
तरसती हो आँख जिसकी झलक पाने को,
खुद़ा ने खुद लिखा हो वो नसीब मैं नहीं,
तिलिस्मी ताक़त मिले मुझे ये सहने के लिए!