फिर आई हिचकी  Aman Pandey

फिर आई हिचकी

Aman Pandey

लो फिर आई हिचकी
किस बात पे था?
हाँ, इस हाल में था कि,
तखत पर पड़ा था,
सिलवटों से घिरा था,
महका समां था,
सामने शमा था,
रंगीन रात थी, हुई
कुछ यूँ बात थी कि,
उनसे कल फिर मुलाकात हुई,
आँखों ही आँखों में
दिन से शाम हुई,
कुछ ना कहकर भी बहुत
कुछ कह चुके थे हम,
और उस शाम, कुछ इस
क़दर बरसात हुई कि,
लाना पड़ा गरीबखाने में अपने,
बरसात थी बाहर लेकिन
तूफान था मन में,
ना बस में रहा कुछ और
भूल गए सब,
बस देखा और जकड़ लिया
उन्हें बाहों में कसके,
क्या कहता कोई अगर
देख लेता ये, मगर
ये प्यार था, ये प्यार है,
ये कल भी था जैसा आज है।
आगे क्या कहें, प्यार अपनी सीमा पे था,
और शमा भी थोड़ा धीमा ही था,
वो निशान सीने में देख
आज भी मुस्कुराता हूँ।
खुश होता हूँ जब आँखें बंद कर
बस उन्हें ही पाता हूँ।
ये सिलवटें याद दिलाती हैं उनकी
इन्हें कह कर गईं थीं कि, मैं फिर मिलूँगी।
इस रात, इस शमा के साथ
बस यही गुनगुनाता हूँ,
जब पूछते हैं दिल का हाल
तब यही किस्सा सुनाता हूँ।
और बताता हूँ कि उसके बाद क्या हुआ!
तो हुआ कुछ यूँ कि…………
“ह्क”!
लो फिर आई हिचकी।
किस बात पे था?

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