बेटी Raj Neesh
बेटी
Raj Neeshबेटी बेटी बेटी बेटी बेटी
क्या लिखूँ मैं बेटी पे,
बेटी पे लिखना ज़ाया है,
बेटी की अथाह कोख में
ये असीम जगत समाया है।
मेरे मन की ग्लानि बोले
अब ना आना तू बेटी,
मर चुका इंसान आज का
बिगड़ चुके हाला बेटी।
अन्तर्मन से वो ज्ञानी है
जपें हवस की माला बेटी,
बाप उमर के साधू घूमें
करते तेरा शोषण बेटी।