बुद्ध की धरा Premlata tripathi
बुद्ध की धरा
Premlata tripathiचाहतें हैं बहुत बस दिखाते नहीं,
बुद्ध की यह धरा भूल पाते नहीं।
देश उत्थान में हम बढ़े हर डगर,
शीश उन्नत रहे हम झुकाते नहीं।
प्राण आतंक से भीत क्यों अब रहे,
राष्ट्र हित दीप को हम बुझाते नहीं।
गीत गाते अधर गुनगुनाते रहें,
लेखनी की लगन हम घटाते नहीं।
कारवाँ प्रीत का हम बढ़ा यों चलें,
पीर आँसू बना कर बहाते नहीं।
गर्व से भर उठे मन खुशी से जहाँ,
प्रेम कोई कमीं हम दिखाते नहीं।
आधार छंद - वाचिक स्रग्विणी
मापनी - 212 ,212 ,212, 212
समांत - आते, पदांत - नहीं