वक़्त की पुकार SUBRATA SENGUPTA
वक़्त की पुकार
SUBRATA SENGUPTAवक़्त की पुकार
गूँज रही है
हिंदुस्तान के कण-कण में,
शंखनाद कर
वायु सन्देश दे रही है
दिशा-दिशाओं में।
युग-युग से
कुम्भकर्ण की भाँति
वक़्त बिताने वालों,
कर की चंद रेखाओं से
अपनी वजूद तौलने वालों,
वक़्त तुम्हें पुकार रही है
स्वयं जागकर औरों को जगाने को,
यह भी सन्देश दे रही है,
सबमें समता की भाव लाने को।
वक़्त यह भी कह रही है
राष्ट्र आज़ाद है,
पर मन गुलाम है
गुलामी की आदत जो है।
चंद मुट्ठियों में राष्ट्र कैद है
जयचंदों के बोलबाले से,
क्षेत्रवाद की हवा देकर
जाति-पाति, मज़हब की बातें बनाकर,
भाई से भाई को लड़ाकर,
देश की एकता बिखर रही है।
जयचंदों के बिगड़े बोल से
गणतंत्र को भटका रही है,
अश्लील शब्दों की बोल से
मातृ शक्ति को शर्मशार कर रही है।
वक़्त की पुकार
गूँज रही है
हिंदुस्तान के कण-कण में,
शंखनाद कर
वायु सन्देश दे रही है,
दिशा-दिशाओं में।