क्या है मुश्किल Ravi Panwar
क्या है मुश्किल
Ravi Panwarक्या है मुश्किल,
और क्या नहीं,
है भी या पता नहीं।
पर कुछ तो है,
धुँधला सा,
डर रहा है तन्हा होने से तेरे,
मर रहा है मन के किसी कोने में मेरे,
झाँक रहा है कि बुझाएगा कोई,
ताक रहा है कि लौट के आएगा कोई।
फिर, कल रात,
कुचल दिया पैरों से,
सिसकता हुआ, तड़पता हुआ,
दिल मैंने अपना ही,
कम्बख्त माँग रहा था जुस्तजू,
जिसमें था बस तू ही तू,
और तेरी मुलाकातें वो,
ढेर सारी बातें वो।
फिर क़तरा-क़तरा बिखर गए,
फट गए जनाब,
मेरे जज़्बातों के कपड़े,
इंतज़ार में,
कि डालेगा कोई, मेरे जहन पर,
अपनी आहट का कम्बल,
ये था पहली दफा,
मैंने देखा रोते हुए,
थक कर, हार कर,
गहरी नींद में सोते हुए।
फिर सुबह, ज़िंदा था,
मुक़म्मल फ़िरोज़,
रोजमर्रा की तरह,
खुदा से वही गुफ्तगू ,
कलम से वही मोहब्बत,
और, तखलिया तो आज भी,
अच्छा लगता है, "रवि"
क्या है मुश्किल ,
और क्या नहीं,
है भी या पता नहीं।