पंछी हूँ RAHUL Chaudhary
पंछी हूँ
RAHUL Chaudharyमैं गीत सुबह हर लाता हूँ
लाली में सूरज के ढककर,
रोज सवेरा अपने साथ
फूलों में मैं भिगोकर,
मैं नभ में पंख खोलकर
विचरण करता पंछी हूँ।
कभी सुनहरी धूप में
कभी घनी दोपहरी में,
कभी वर्षा से लड़ते
कभी बिजली से बचके,
मै नभ में पंख खोलकर
विचरण करता पंछी हूँ।
कभी दुश्मनों से भागता
कभी मैं थककर हारता,
बादलों के बीच होकर
बाग बगीचे सब छानता,
खुले गगन में मस्ती में
विचरण करता पंछी हूँ।
कभी प्रवासी बन जाता हूँ
दूर देश में मैं जाकर,
तूफानों से भी लड़ जाता हूँ
मीलों की यात्रा पर,
रोज़ सुबह आकाश चूमता
विचरण करता पंछी हूँ।
घर बार हमारा पेड़ों पर ही
दिन भर सफर हम करते हैं,
चुग कर दाना पानी ही
जीवन यापन करते हैं,
धरती की गोद में फुदकता
कलरव करता पंछी हूँ।
भूख शांत करने के खातिर
नज़रें धरती पर टिकाकर,
दाने दाने के तलाश में
खेतो में तो कभी छतों पर,
कड़ी धूप में मै जलकर
आँगन में फिरता पंछी हूँ।
बेखौफ हूँ छोटा जीव हूँ
कहीं भी आता जाता हूँ,
बस भूख मिटा लूँ अपनी
इतने की चाहत रखता हूँ,
ना है ठिकाना ना खजाना है
पेट का मारा मैं परिंदा, पंछी हूँ।
कुछ दानों की आशा लेकर
दुनिया से रूबरू होता हूँ,
बेखबर होकर मैं जाने क्यों
फंदा, गोली, ज़हर से मरता हूँ,
दाना चुगता मै हूँ मरता
उड़ता मरता, चुगता मरता पंछी हूँ।
अपने विचार साझा करें
पंछियों की दिनचर्या मनुष्यों की दिनचर्या से अलग होती है। पंछी भोजन की तलाश से दिन शुरू करता है और शाम को खत्म करता है। उसका उद्देश्य बस भोजन मिल जाए कहीं भी, चाहे शुद्ध हो या विषाक्त, उसे इस बात की परवाह नहीं, क्योंकि उसे उसकी पहचान नहीं। उसे बस भोजन करना है जिसकी मात्रा कुछ दाने और पानी की बूंदें होती हैं। लेकिन धरती पर इसके लिए उन्हें अपने प्राणों की बाजी भी लगा देनी पड़ती है।
