इल्तज़ा Ravi Panwar
इल्तज़ा
Ravi Panwarअगर वो मिल कहीं जाए, तो ये इल्तज़ा देना,
मैं कर पाऊँ सफ़र पूरा, बस इतनी सी वज़ह देना।
बहुत होते जमाने में, जिनके घर नहीं होते,
तुम ऐसे बेघरों को, अपने दिल में जगह देना।
किसी ने प्यार खोया है, किसी ने यार खोया है,
बड़ी तकलीफ़ में हैं जो, उसे हरदम शिफ़ा देना।
बैठा भीड़ में लेकिन, मगर फिर भी अक़ेला है,
ये जो तन्हाई का आलम, खुदा उससे बचा देना।
किसी के ज़ख्म डरते हैं, कोई डरता है ज़ख्मों से,
हकीमों की तरह तुम भी उसे मरहम लगा देना।
जिसने तोड़ कर तुझको, हीरे सा तराशा है,
तोहफ़े ज़िन्दगी में बस, उसको मजा देना।
कभी रातों में आते जो, आकर दिल दुखाते जो,
ऐसे बेरहम ख्वाबों को, मेरा अलविदा देना।
जिसने खाई है ठोकर, चमन अपना उजाड़ा है,
पकड़कर हाथ तुम उसका, उसे फिर से उठा देना।
मस्जिद में बुलाता है, कोई मन्दिर में गाता हैं,
सदा सबकी मुक़्क़मल हो, बस ऐसी दुआ देना।
और, "रवि" के मन में तहख़ाना, अँधेरों का ठिकाना है,
जलाकर एक दिया रोशन, मुझे मुझसे मिला देना।