मौत का दुःख  RATNA PANDEY

मौत का दुःख

RATNA PANDEY

मौत हूँ मैं, इस ब्रह्मांड में मुझसे कोई जीत नहीं सकता,
राजा हो या रंक, मेरे आगे कभी कोई टिक नहीं सकता।
 

हर कोई मुझसे डरकर, अपने रास्ते से हटाना चाहता है,
ऐड़ी से चोटी का पूरा जोर लगा कर, लौटाना चाहता है।
 

एक बार जो मैं आ गई, फिर कदापि वापस जाती नहीं,
जिसकी जितनी साँसें हैं, उससे अधिक मिल पाती नहीं।
 

कर्म है यह मेरा, इसलिए मुझे यह फर्ज़ निभाना पड़ता है,
कितनी भी ज़रुरत हो इंसान की, मुझे ले जाना पड़ता है।
 

तुम यह कभी मत समझना कि मैं निष्ठुर और निर्दयी हूँ,
मैं भी ना जाने कितनी बार, फूट-फूट कर अकेले रोई हूँ।
 

नन्हे मासूमों को अपने साथ ले जाने में, मैं काँप जाती हूँ,
जब भी अपनी गोद में, मैं उन्हें अंतिम बार उठाती हूँ।
 

जब सीमा पर खड़े वीरों को, लाने का आदेश होता है,
भगवान का आदेश ना मानूँ, ऐसा मन में उद्वेग होता है।
 

अच्छे इंसानों को क्यों बुलाया, मन में मेरे प्रश्न होता है,
किंतु प्रभु के आदेश का पालन, मेरा कर्तव्य होता है।
 

जानती हूँ भगवान है, उनके आगे सर मैं कैसे उठा पाऊँ,
महिमा उनकी अपरम्पार है, शायद मैं ही ना समझ पाऊँ।
 

मैं तो चाहती हूँ, बलात्कारियों और हत्यारों को ले जाऊँ,
देशद्रोही, गद्दारों को, नर्क के अंदर तक छोड़कर आऊँ।
 

किंतु जब इन ज़ालिमों को ले जाने में, मैं असफल रहती हूँ,
उस वक़्त अपनी स्वयं की नज़रों में, मैं स्वयं ही गिरती हूँ।
 

मज़बूर हूँ बिना आदेश के, मैं कुछ भी नहीं कर सकती,
वरना चुन-चुन कर ज़ालिमों, के जीवन का अंत मैं करती।

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