नव वर्ष की चुनौतियाँ Shubham Kumar
नव वर्ष की चुनौतियाँ
Shubham Kumarहो गया ख़त्म एक और साल,
पर वर्ष नया एक आएगा,
कुछ उम्मीदें, कुछ सपनें फिर
देखो कितना दे पायेगा।
धन दे देगा, मन दे देगा,
ख़ुशियाँ भी शायद दिलाएगा,
पर प्रश्न अभी भी वही खड़ा,
वो भूखा क्या कुछ खायेगा?
वो बेघर हैं जो पड़े हुए
क्या सर उनका ढ़क पायेगा,
वो पानी जो मिलता उनको
क्या पीने योग्य मिल पायेगा?
नफ़रत को ख़त्म करके फ़िरसे
क्या प्रेम दिया जल पायेगा,
ये जाति-धर्म अब बहुत हुआ,
क्या भारत 'भारत' बन पायेगा?
ये बात नहीं उम्मीदों की,
ये बात नहीं है सपनों की,
ये बात नहीं अब आग्रह है,
इस बार है बातें अपनों की।
अब और ना हो काली रातें,
अब और ना हो ये नम आँखें,
अब और ना हो बेबस बातें,
हो सिर्फ मुहब्बत की बातें।
हमें आशा नहीं अबकी विश्वास है,
उनके चेहरे पर मुस्कान आएगा,
इस आर्यावर्त की धरती पर जब,
जय गान सुनाया जाएगा।
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नव वर्ष हर्ष के साथ एक आत्मचिंतन का भी समय होता है। ये कविता हमारे देश एवं समाज की समस्याओं की तरफ आपका ध्यान खींचने की कोशिश करती है, और ये उम्मीद भी जताती है कि हम सब अगर इस नव वर्ष में संकल्प लें तो इन बुराईयों और परेशानियों से निश्चित हीं निजात पा सकते हैं।