रवि किरणों को पुनः बिखेरा  ANIL Mishra Prahari

रवि किरणों को पुनः बिखेरा

ANIL Mishra Prahari

उठे लोग अब नींद त्यागकर
कर्मनिष्ठ जग हुआ जागकर,
चूँ-चूँ कर कुछ गाने गाए
नीड़ छोड़ खग पर फैलाए,
धरती से अब दूर अँधेरा,
रवि किरणों को पुनः बिखेरा।
 

स्वर्णिम ज्योति रची कण-कण में
मादकता अनुपम मधुवन में,
कलियों ने घूँघट-पट खोला
मधुप बावरे का मन डोला,
अलि-अवलि का बाग बसेरा
रवि किरणों को पुनः बिखेरा।
 

दूर करे तम भाग्य-विधाता
ले किरणें वह दर-दर जाता,
दरवाजे, घर बन्द न हों अब
गति जीवन की मन्द न हो अब,
शुभ्र-ज्योत्सना का यह घेरा
रवि किरणों को पुनः बिखेरा।

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