शुरुआत है सफर की  VINAY KUMAR PRAJAPATI

शुरुआत है सफर की

VINAY KUMAR PRAJAPATI

ये तो शुरुआत है सफर की,
रौशनी मिलेगी हर डगर की,
रास्ते पर तो चल दिए हैं,
ज़िन्दगी को दो पल दिए हैं।
 

सपनों को भी यह रास है,
संगेमरमर सी जो आस है,
नज़र मेरी तलाश रही है,
किस्मत से जो भाग रही है।
 

नदी की धारा कह रही है,
किरणों सी जो बह रही है,
उन परिंदो का बसेरा कहाँ है,
कहते थे जो अँधेरा यहाँ है।
 

उनकी ऐसी नज़र कहाँ थी,
उजालों की भी कदर कहाँ थी,
जी रहे हैं चल रहे हैं,
अंधेरों से बस लड़ रहे हैं।
 

रात उनकी हुई है तब से,
मंज़िल पथ पर गिरे हैं जब से,
भूल जाते हैं गिर कर उठना,
बलवान अगर ना हो जिनका सपना।
 

इन बातों का असर हुआ है,
रूह को मेरी खबर हुआ है,
कुछ पत्ते तो गिर जाते हैं,
तूफानों को ना सह पाते हैं।
 

किताबों ने यह सच कहाँ है,
पथ पर जो भी डटा रहा है,
सपनों भरा आसमान है उनका,
मंज़िल पथ पर नाम है जिनका !

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