सब लौट आए हैं... Mohanjeet Kukreja
सब लौट आए हैं...
Mohanjeet Kukrejaख़ाली सड़कें
साफ़-सुथरी फ़ज़ा
एक ख़ामोशी
जो पहले
कहीं नहीं थी।
खिड़की पर पंछी -
उनकी चहचहाहट
जो पहले ट्रैफ़िक
के शोर में
कहीं दब जाती थी।
हाथ में कोई किताब
जो बुक-शेल्फ़ पर
बाक़ी किताबों के
साथ रखी
धूल खा रही थी।
वो घर का
खाना पीना
जिसका ज़ायका
हम सब
भूलने लगे थे।
सांप-सीढ़ी
लूडो और कैरम
जो घर के
किसी कोने में
उपेक्षित पड़े थे।
घर में सबका
एक-साथ
हंसना-खेलना
उठना बैठना
वक़्त बिताना।
कुछ क़िस्से
वो कहानियां
जो दिमाग़ की
तहों में कहीं
खो चले थे…
अचानक सब लौट आए हैं !
