शब्दभेदी बाण और रामायण  SANTOSH GUPTA

शब्दभेदी बाण और रामायण

SANTOSH GUPTA

शब्दभेदी बाणों से ही तो
रची गयी थी रामायण,
हुआ शिकार निशाने का
त्यागा प्राण कुमार श्रवण।
 

श्राप मिला जब दशरथ को
बना पुत्र वियोग का कारण,
फलस्वरूप ही तो हुआ था
माँ कैकेयी को पागलपन।
 

भर दिया था मंथरा ने तब
लोभ से ममता का मन,
देकर तब एक रघुवंशी ने
निभाया था अमोघ वचन।
 

जिद्द किया था जाने का फिर
जनकनंदिनी सीता ने संग,
नहीं रुक पाये थे महलों में
छोड़ राम को अनुज लक्ष्मण।
 

निकल पड़े थे तीनों फिर
कर वनवासी वस्त्र धारण,
लेते ज्ञान ऋषि मुनियों से
फिरते थे वो वन-वन।
 

भ्रमजाल सा फैला था
ठगे गए थे तब रघुनंदन,
देख हुई थी मोहित जब
जानकी स्वर्णिम हिरण।
 

बन भिक्षु किया कपट था
साधु वेश में था रावण,
रोती, बिलखती वैदेही को
दुष्ट, निर्दयी ने किया हरण।
 

था असुरों की प्रवृत्ति वाला
पर जाति से था ब्राह्मण,
था प्रतापी और महाज्ञानी
कहलाता था वो दशानन।
 

विरह मे तड़पे थे राघव
संत्रस्त हुआ था त्रिभुवन,
देख भईया की वेदना
बेबस थे सुमित्रानंदन।
 

हुए तृप्त थे दोनों भाई खाकर
झूठे बेर का मीठापन,
दिखाया राह शबरी ने था
मिला उनको किष्किंधा शरण।
 

वानर राज सुग्रीव ने लिया था
रघुपति के मदद का प्रण,
दिखलाया था पराक्रम अपना
कर हनुमान ने लंका दहन।
 

पड़ रहा तब चिंता मे था
लंकापति फिर क्षण-क्षण,
कर प्रयत्न नैतिकता का पाठ
हार चुका था भ्राता विभीषण।
 

कर सागर पार पहुँचा था
भक्त करने फिर इष्ट दर्शन,
बतलाया था नल नील का श्राप
प्रकट हुए थे सागर देव स्वयं।
 

कर पार वानर सेना ने
किया था फिर आक्रमण,
मेघनाद के शक्ति बाणों से
हुए जब मूर्छित थे लक्ष्मण।
 

लाए थे फिर पहाड़ उठाकर
हनुमान से मिला संजीवन,
खोला था जब भेद भाई ने
मृत्यु ने किया लंकेश को ग्रहण।
 

कर संहार, पूरा किया उद्देश्य
हुआ सफल फिर अवतरण,
बने राजा अयोध्या लौटकर
हुआ रामराज, बना रामायण।
जय श्री राम।

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