जैविक शस्त्र महायुद्ध  Rajender कुमार Chauhan

जैविक शस्त्र महायुद्ध

Rajender कुमार Chauhan

बहुत हो चुका युद्ध शस्त्रों से,
अब प्रकृति से युद्ध होना है!
मानव की आकांक्षा की अति,
कुदरत का भी क्षुब्ध होना है।
 

परमाणु हथियार बन चुके,
जैविक हथियार बनाना है!
चाँद पर कर लिया है कब्ज़ा,
अन्य ग्रहों को हथियाना है!
'धरा' का रहस्य धरा रह गया,
अब अद्भुत मंगल बुद्ध होना है।
 

जिसने जीवों को जन्म दिया,
वो जटिल तकनीक अभेद्य है!
स्वयं को संपूर्ण ना समझ सका,
चला खोजने सृष्टि का भेद है!
बहुत सह चुकी मानव की हठ,
प्रकृति को अब क्रुद्ध होना है।
 

जीवों में छुपे हैं जैविक अस्त्र,
हर कण में इसका भण्डार है!
शक्ति विशेष हर मारक शस्त्र,
महामारी का रूप ही प्रहार है!
मार्ग देख- 'अवसर प्रदान है',
वरन अभी और रूद्र होना है।
 

पृथ्वी सहेगी यदि कष्ट यातना,
त्राहि-त्राहि कर वो वार करेगी!
उपयोग करेगी उपयुक्त सामग्री,
सहस्रों में वो नर संहार करेगी!
मानव जाति की है दुख व्यथा,
उसकी दृष्टि में शुद्ध होना है।

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