बचपन Ajay Kumar Pandey
बचपन
Ajay Kumar Pandeyआओ फिर बचपन हम जी लें
अपनी उन बीती को जी लें,
दिल के सब दरवाजे खोलें
आओ फिर बचपन हम जी लें।
वो माँ की लोरी, वो ममता का आँचल,
वो दादा की घुड़की, वो दादी का आँचल,
वो खिलौनों की खातिर हठ कर मचलना,
वो पापा की उंगली पकड़कर मचलना,
वो चुपके से पापा की जेबें खंगालना,
गुम सुम सी देखती सब ममता बेचारी,
बहुत याद आती हैं, बातें वो सारी।
वो मम्मी की उंगली थामे स्कूल को जाना,
वो दोस्तों से रूठना, पल में मनाना,
वो टीचर की डांटें, वो प्यारी सी बातें,
बेवजह ही गूँजती हरपल किलकारी,
बहुत याद आती हैं, बातें वो सारी।
वो बहना की राखी, वो भाई से लड़ना,
स्कूलों की छुट्टी, वो बारिश में भींगना,
भींगे हुए माँ के आँचल में चिपकना,
वो प्यारा सा गुस्सा, वो प्यारी सी थपकी।
गलतियों को हमारी सबसे छुपाना
खुद डाँट खाना पर हमको बचाना,
हर दर्द पे हमारे आप ही आँसू बहाना,
फिर भी लुटाती ममता वो सारी,
बहुत याद आती हैं, बातें वो सारी।
हमारे लिए ताजी रोटी बनाना
खुद बासी खाकर के सो जाना,
गर्मी में ऐ.सी से ठंडा था आँचल,
ठंडक में गोदी ही था रजाई हमारा,
कितना मधुर था वो बचपन हमारा।
खुशियों के लिए हमारी
जिन्होंने किए इतने त्याग,
उनके ही चरणों में है काशी-प्रयाग,
दुनिया में नहीं कोई है तीरथ ऐसा,
माता-पिता के चरणों के जैसा।
कहाँ आ गए पर हम आज चलते-चलते
तलाशे हजारों पर फिर वो पल नहीं मिलते,
आधुनिकता की होड़ में पल-पल हैं भटकते,
पैसों की रफ्तार में है खोया कहीं अपनापन,
कितना मधुर था वही अपना बचपन।
कान तरसते हैं कोई तो फिर बुलाए
उन्हीं तुतलाते नामों को फिर दोहराए,
फिर से उन्हीं गलियों में घुमाए,
कब तक फिरूँ मैं आँखों में आँसू छुपाए,
कोई तो हो जो फिर से बचपन लौटाए,
कोई तो हो जो फिर से बचपन लौटाए।