खुला आसमान Mohanjeet Kukreja
खुला आसमान
Mohanjeet Kukrejaआज-कल कोई फ़िक्रमंद तो कोई परेशान मिले,
कितना डरा हुआ दिखता है जो भी इंसान मिले।
दौर-ए-हयात में अब यक़ीन बरक़रार कैसे रहे,
डाँवा-डोल ही इन दिनों दुनिया का ईमान मिले।
मुश्किल दौर है अल्लाह तौफ़ीक़ अता फ़रमाए,
किसे पता इसके बाद कौन सा इम्तिहान मिले।
अब भी वक़्त है, बख़्शवा लें अपने गुनाहों को,
कहीं ऐसा ना हो कल हर जगह बयाबान मिले।
पिंजरे का दर्द समझ चुके हैं ख़ास-ओ-आम...
शायद परिंदों की दुआ से खुला आसमान मिले।