माँ  SANTOSH GUPTA

माँ

SANTOSH GUPTA

वहा आसमानों में टिमटिमाते हैं न तारे जो
जलते है मेरी माँ से, जहाँ के सितारे वो,
जब कहती है मेरी माँ मुझसे
तुम्ही मेरी आँखों के तारे हो।
 

सूरज तो करता है रौशन जहाँ
फैलाकार उजियारे को,
पर मेरी माँ हरती है
मेरे जीवन के हर अँधियारे को।
 

रखता हूँ जब अपना सर
उसकी गोद में सहारे को,
जीवन की हर मुश्किल को
छोटी बनाने को,
आँखो के आँसू को
मोती बनाने को।
 

वह मृदुता, वह ममता, वह अद्भुत संयमता
धरा में कही और कहाँ हम पाने को,
वह दया की प्रज्ञा, वह करुणा की गंगा
वसुधा पर और कौन है बहाने को।
 

जीवन के भव सागर में
वह तैरना सिखाती उत्प्लवन बनकर,
जीवन के हर पहलू का
वह स्वरुप दिखाती दर्पण बनकर।
 

बन जाती वह हवा की लहरें
हमें आसमान में उड़ाने को,
साहस भरती, भरती हिम्मत
हम में, नभ छू जाने को।
 

अगर शिव के जटों से गंगा
अगर निकली है, भक्ति लाने को,
आई है माँ जगत में
स्नेह बरसाने को।
 

जीवन से पहले मैं उससे ही तो साँसें लेता था,
भीतर उसके ही रहकर, उसे दर्द देता था।
उसके रक्त का अंश बना मैं
उसका लाल कहलाने को,
रोता हुआ मैं आया जग में
उसे हँसाने को।
 

ईश्वर ने है उतारा धरती पर
माँ के रूप में खुद को दिखलाने को,
उसके अनन्य प्रेम के लिए बने हम
बिन समझे, बस पाने को।

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