बचपन  Pooja Sharma

बचपन

Pooja Sharma

बचपन भुलाने बैठी थी
कि आँखें भर आई,
माँ की लोरी, पिता का प्यार
जो मिलता था बारम्बार,
स्मृति पटल से न ओझल हो पाए
आह! बचपन भुलाया न जाए।
 

चोट लगने पर माँ का सहलाना
बस ठीक हो गई कहकर गुनगुनाना,
अब कहाँ से पाएँ
आह! बचपन भुलाया न जाए।
 

वत्सलमयी माँ की पुकार
स्नेह लुटाता पिता का दुलार,
रह रहकर याद आए
आह! बचपन भुलाया न जाए।
 

चाहे हो मीठे सपनों की बात
या फिर माँ के हाथों बने खाने का स्वाद,
कुछ भी तो न मिल पाए
आह! बचपन भुलाया न जाए।
 

गुड्डे गुड़ियों का वह खेल
वह भाई-बहन का मेल,
देर तक छत पर पतंग उड़ाना
वो पापा का पढ़ने के लिए बैठाना,
रह रहकर याद आए
आह! बचपन भुलाया न जाए।
 

न कोई चिंता न कोई ज़िम्मेदारी
अपने मन के थे स्वयं अधिकारी,
दिन भी तो न लगते थे भारी
अब कहाँ से खेले वह पारी,
सोच कर मन घबराए
आह! बचपन भुलाया न जाए।
 

वह माता पिता द्वारा आत्मविश्वास बढ़ाना
छोटी बड़ी सफलता मिलकर मनाना,
इस भीड़ में न मिल पाए
आह! बचपन भुलाया न जाए।
 

सोचकर वह दौर मन प्रफुल्लित हो जाए
पर बीता समय न लौट पाए,
समय चक्र चलता ही जाए
पर बचपन भुलाया न जाए,
बचपन भुलाया न जाए।

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