मजबूर मज़दूर  Pooja Sharma

मजबूर मज़दूर

Pooja Sharma

मजदूर आज कितना मजबूर है
अपने ही घर से कितना दूर है,
पलायन करने को मजबूर है
मजदूर आज कितना मजबूर है।
 

दो वक़्त की रोटी खाने को
अपनी भूख मिटाने को,
आज बन गया मजबूर है
मज़दूर आज भी मजबूर है।
 

देखो कांधे पर बेबसी का बोझा लटकाए,
जा रहा किस ओर है
मजदूर आज कितना मजबूर है।
 

दुधमुँहे बच्चों को लिए गोद में
हाय वो मीलों चलता है,
मई माह की भीषण गरमी में
देखो वह निरंतर तपता है।
 

पेट पीठ मिलकर हो गए एक
पैरों में छाले पड़े अनेक,
फिर भी चलने को मजबूर हैं,
इस पर थोथे सरकारी आश्वासन ज़रूर है,
मज़दूर आज कितना मजबूर है।
 

इन पर नियति भी अपना क्रोध दिखाती है
कभी सड़क तो कभी रेल दुर्घटना इनको सताती है,
फिर भी समझौता करने को ये मजबूर हैं
हाँ आज भी मजदूर मजबूर है।
 

द्रवित हो उठती हूँ देख इनकी लाचारी
अपने ही देश में प्रवासी बना गई इन्हें महामारी,
देख देश की दशा हृदय व्यथित हो जाता है,
क्यों आज भी श्रमिक आत्मनिर्भर नहीं बन पाता है,
आज भी विकसित देश बन पाना दिखता दूर है
मजदूर आज भी मजदूर है।
 

वातानुकूलित कमरों में बैठ जो नीतियाँ गढ़ते हैं
क्या वे इनकी लाचार आँखों को भी पढ़ते हैं?
आज भी ये बुनियादी सुविधाओं से दूर हैं
मजदूर आज बहुत मजबूर है,
मजदूर आज मजबूर है।

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