चुनाव का सच ABHISHEK KUMAR GUPTA
चुनाव का सच
ABHISHEK KUMAR GUPTAएक लम्बी कतार में
कुछ मित्रों के साथ में
वोट देने के खातिर
हम भी खड़े थे,
धक्के-मुक्की की मार में
पहचान पत्र के साथ में
आगे बढ़ने के होड़ में
हम भी पड़े थे।
कोई हीरो के जैसे थे
सजकर के आए,
तो कोई सड़कछाप
बनकर के खड़े थे।
कुछ आशिक मिजाज लफंगे
तितलियों की तलाश में
अपनी तिरछी नज़रों को
दौड़ाए पड़े थे।
बूढ़े मियां भी रंगे थे
अपने ही रंग में,
जो हर एक खबर के लिए
आतुर बड़े थे।
सभी दल के प्रत्याशी
बस मत के ही मद में
हर एक वोटर के आगे
अपने दोनो हाथों को जोड़े पड़े थे,
तो कोई किसी मतदाता के ऊपर
एक मत के ही आस में
अपनी लाचार नज़रों से
ताड़े पड़े थे।
पुलिस वाले भी थे
अपने भरपूर रंग में,
वो भी हर एक किसी को
हड़काए पड़े थे।
पर इन सबसे दूर
रोटी को मजबूर
अपने बच्चों के खातिर
कुछ ठेलेवाले खड़े थे।
उन्हें इल्म न था
इस चुनावी संग्राम का,
वो तो बस चंद रुपयों के
खातिर खड़े थे।
हकीकत तो शायद यही है ऐ यारों
कि वो मोल कैसे करेगें इस मत का
जिनके घर में ही
खाने के लाले पड़े थे।