ज़िंदगी का सफर Deepak
ज़िंदगी का सफर
Deepakमतलबी इस दुनिया में इंसान बस इंसान की जान माँगता है,
कोई रुतबा, कोई पैसा, तो कोई मकान माँगता है।
मेहनत कोई करता नहीं बुलंदी तक जाने की,
बिन जले ही वो कुंदन सा नाम माँगता है।
मुझे लगता है पीने की आदत है शहर को मेरे,
ख़ुशी और गम दोनों ही पहलू में जाम माँगता है।
बबूल ही बबूल बोये हैं ताउम्र उसने,
अब वो बबूल मीठे-मीठे आम माँगता है।
इतना पढ़ने के बाद भी वो अब तक बेरोजगार है,
परिवार की जिम्मेदारियाँ है कन्धों पर उसके,
घर को चलने के लिए अब वो कोई भी काम माँगता है।
सुबह होते ही लड़ते रहे हैं मामूली सी चीज़ों पर,
अब वो हँसी के कुछ दिन और सुकून की शाम माँगता है।